अनंत परिंदो क़ी इस भीड़ में,
अनगिनत सपनो के इस शहर में,
आशाओ के इस सागर में,
उमीदों की इस गागर में,
कहीं अकेले चलते हुए,
अप्रिय से कुछ पलों में,
पाया एक आश्वासक को,
वो जिसने राहा दिखाई,
वो जिसने मन में चेतना जगाई,
ज़िंदगी के इस सफ़र में,
एक अजीब सी नवीनता लाई,
वो ख़ास दोस्त मेरा,
वो साथी सबसे गहरा,
वो जो हर कदम साथ चला,
मेरे अबोध को जो समझा और जाना,
मेरी सहजता को परखा और माना,
पक्षपात से मुक्त सदा,
वो जो बना हमराज़ मेरा.